
पहाड़ों की लाइफलाइन पर बड़ा ब्रेक! उत्तराखंड रोडवेज में वेतन का ‘महा-संकट’, कर्ज के सहारे चल रही कर्मचारियों की जिंदगी
उत्तराखंड की घुमावदार, खतरनाक और खूबसूरत सड़कों पर जब रोडवेज की बस दौड़ती है, तो वह सिर्फ यात्रियों को उनकी मंजिल तक नहीं पहुंचाती, बल्कि वह पहाड़ों की धड़कन, यहाँ की ‘लाइफलाइन’ बनकर दौड़ती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस लाइफलाइन को चलाने वाले हाथ, वो ड्राइवर और कंडक्टर, जो आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाते हैं, उनकी अपनी जिंदगी की गाड़ी किस हाल में चल रही है?
आज हम आपको एक ऐसे ‘महा-संकट’ की कहानी बताने जा रहे हैं जो उत्तराखंड परिवहन निगम के बंद दरवाजों के पीछे गहराता जा रहा है। यह संकट है वेतन का संकट। एक ऐसा संकट जिसने हजारों कर्मचारियों और उनके परिवारों को इस हद तक बेबस कर दिया है कि वे अपनी मेहनत की कमाई के लिए नहीं, बल्कि कर्ज और उधार के सहारे जीने को मजबूर हैं।
क्या है संकट की जड़? महीने की शुरुआत और अंतहीन इंतजार
यह कहानी किसी एक महीने की नहीं है। यह उत्तराखंड रोडवेज के कर्मचारियों के लिए लगभग हर महीने की हकीकत बन चुकी है। महीना खत्म होता है, लेकिन बैंक खाते में वेतन का मैसेज नहीं आता। एक तारीख गुजरती है, फिर पांच, फिर दस… और इंतजार अंतहीन हो जाता है। अगस्त 2025 के मध्य तक भी, कई कर्मचारियों को जुलाई महीने का वेतन नसीब नहीं हुआ है।
यह सिर्फ वेतन की बात नहीं है। ओवरटाइम का पैसा, महंगाई भत्ते का एरियर और अन्य भत्तों का भुगतान भी अक्सर महीनों तक अटका रहता है। और जो कर्मचारी अपनी जिंदगी के सुनहरे साल निगम को देने के बाद सेवानिवृत्त हो चुके हैं, वे भी अपने पेंशन और ग्रेच्युटी के पैसे के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
कर्मचारियों का दर्द, उन्हीं की जुबानी: “त्योहारों में बच्चों को क्या जवाब दें?”
हमने जब कुछ कर्मचारियों से (नाम न छापने की शर्त पर) बात की, तो उनका दर्द छलक पड़ा। एक वरिष्ठ ड्राइवर ने कहा, “हमारी आधी जिंदगी इन पहाड़ों में बस चलाते हुए गुजर गई। आज हालत यह है कि बच्चों की स्कूल की फीस भरने के लिए मुझे अपने दोस्त से उधार मांगना पड़ा। हर महीने यही कहानी है। हम बस नहीं, अपनी चिंताएं और तनाव भी स्टियरिंग पर लेकर चलते हैं।”
एक अन्य कंडक्टर ने नम आंखों से बताया, “राखी का त्योहार आने वाला है। बहन को क्या तोहफा दूंगा, यह सोचकर ही दिल बैठ जाता है। घर का किराया सिर पर है, राशन वाले का उधार बढ़ता जा रहा है। समझ नहीं आता कि हम नौकरी कर रहे हैं या सजा काट रहे हैं। अपनी ही मेहनत का पैसा हमें भीख की तरह इंतजार करके मिलता है।”
यह सिर्फ दो लोगों की कहानी नहीं, बल्कि निगम के लगभग 6,000 से अधिक कर्मचारियों की साझा पीड़ा है। वे अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं, लेकिन जब महीने के अंत में उनका परिवार उनसे पूछता है कि “तनख्वाह कब आएगी?”, तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता।
कर्ज का जाल: एक दुष्चक्र जो खत्म नहीं होता
समय पर वेतन न मिलने का सीधा असर कर्मचारियों के जीवन पर पड़ रहा है। वे एक ऐसे कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं जिससे निकलना मुश्किल है।
दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार: हर महीने की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें दोस्तों और रिश्तेदारों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है।
ऊंचे ब्याज पर कर्ज: जब कहीं से मदद नहीं मिलती, तो कई कर्मचारी स्थानीय साहूकारों या माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से ऊंचे ब्याज पर छोटा-मोटा कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं, जो उनकी वित्तीय स्थिति को और भी खराब कर देता है।
मानसिक तनाव और स्वास्थ्य पर असर: लगातार वित्तीय असुरक्षा के कारण कर्मचारी गंभीर मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद का शिकार हो रहे हैं। यह सवाल भी उठता है कि जो ड्राइवर खुद इतने तनाव में है, वह हजारों यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कैसे निभा सकता है?
क्यों हैं ऐसे हालात? निगम की खस्ता माली हालत
उत्तराखंड परिवहन निगम की यह हालत एक दिन में नहीं हुई। इसके पीछे कई बड़े कारण हैं:
बढ़ता घाटा: निगम लगातार करोड़ों के घाटे में चल रहा है। आय और व्यय के बीच एक बड़ी खाई है।
डीजल की बढ़ती कीमतें: डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं, जिससे बसों के संचालन की लागत बहुत बढ़ गई है।
पुरानी बसें: रोडवेज के बेड़े में अभी भी कई पुरानी और खस्ताहाल बसें हैं, जिनके रखरखाव पर भारी खर्च होता है और वे माइलेज भी कम देती हैं।
सरकारी विभागों पर बकाया: कई अन्य सरकारी विभागों पर परिवहन निगम का करोड़ों रुपये का बकाया है, जिसका भुगतान समय पर नहीं होता।
सरकार से अपर्याप्त मदद: कर्मचारी संघों का आरोप है कि सरकार निगम को इस वित्तीय संकट से उबारने के लिए पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं दे रही है।
प्रबंधन और सरकार का पक्ष: “कोशिश जारी है” का पुराना आश्वासन
जब भी यह संकट गहराता है, प्रबंधन और सरकार की ओर से एक ही रटा-रटाया जवाब आता है – “हम स्थिति से अवगत हैं। फंड की व्यवस्था की जा रही है। जल्द ही वेतन जारी कर दिया जाएगा।” यह आश्वासन कुछ समय के लिए कर्मचारियों के गुस्से को शांत कर देता है, लेकिन यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। कर्मचारी संघ लगातार विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की चेतावनी देते रहते हैं, लेकिन उनकी आवाज फाइलों के ढेर में दबकर रह जाती है।
निष्कर्ष: आखिर कब तक?
सवाल यह है कि जो उत्तराखंड रोडवेज राज्य के पर्यटन और आम जन-जीवन की रीढ़ है, उसके कर्मचारियों की रीढ़ क्यों तोड़ी जा रही है? जो कर्मचारी दिन-रात, सर्दी-गर्मी और बरसात में, खतरनाक पहाड़ी रास्तों पर अपनी जान जोखिम में डालकर सेवा दे रहे हैं, उन्हें अपनी मेहनत का पैसा समय पर क्यों नहीं मिल सकता?
यह सिर्फ वेतन का संकट नहीं है, यह हजारों परिवारों के सम्मान और अस्तित्व का संकट है। अगर जल्द ही सरकार और प्रबंधन ने इस ‘महा-संकट’ का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला, तो वह दिन दूर नहीं जब पहाड़ों की इस लाइफलाइन पर एक ऐसा ब्रेक लग सकता है, जिसका खामियाजा पूरे प्रदेश को भुगतना पड़ेगा।
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- August 16, 2025