नैनीताल, 16 अगस्त, 2025: पहाड़ों की शांत वादियों के लिए मशहूर नैनीताल में इन दिनों सियासी पारा अपने चरम पर है। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले, राजनीति की बिसात पर एक ऐसा नाटक खेला गया जिसने अपहरण, साज़िश और सत्ता के खेल के सारे रंग दिखा दिए। कहानी की शुरुआत कुछ ‘लापता’ जिला पंचायत सदस्यों, भाजपा नेताओं पर दर्ज हुए अपहरण के मुकदमे से हुई, लेकिन इसका अंत एक ऐसे यू-टर्न के साथ हुआ जिसने पूरे विपक्ष को सकते में डाल दिया है।
यह मामला उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर देखे जाने वाले ‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ के उस स्याह अध्याय को उजागर करता है, जहाँ चुनाव जीतने के लिए हर दांव आजमाया जाता है।
क्या था पूरा मामला? ऐसे शुरू हुआ सियासी बवंडर
मामले की जड़ में नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी है, जिस पर काबिज होने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच शह और मात का खेल चल रहा है। चुनाव में जीत के लिए जादुई आंकड़ा जुटाने की जद्दोजहद में, कुछ निर्दलीय और विपक्षी खेमे के सदस्यों की भूमिका ‘किंगमेकर’ जैसी हो गई थी।
कहानी ने नाटकीय मोड़ तब लिया जब कुछ दिन पहले, जिला पंचायत के तीन महत्वपूर्ण सदस्य अचानक ‘लापता’ हो गए। उनके फोन बंद आने लगे और उनके परिवारों से भी संपर्क टूट गया। इसके तुरंत बाद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने हंगामा खड़ा कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्ताधारी भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए इन सदस्यों का अपहरण कर लिया है और उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर बंधक बनाकर रखा है।
विपक्ष ने इसे “लोकतंत्र की हत्या” करार दिया और सड़कों पर प्रदर्शन शुरू कर दिया। मामले की गंभीरता को देखते हुए और बढ़ते दबाव के बीच, ‘लापता’ सदस्यों में से एक के परिवार की शिकायत पर पुलिस ने नैनीताल के कुछ प्रमुख भाजपा नेताओं के खिलाफ अपहरण और अवैध रूप से बंधक बनाने का मुकदमा दर्ज कर लिया। एफआईआर दर्ज होते ही नैनीताल की राजनीति में भूचाल आ गया और ऐसा लगा कि भाजपा इस चुनाव से पहले ही कानूनी पचड़े में फंस गई है।
और फिर… कहानी में आया तूफ़ानी मोड़
जैसे ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और भाजपा नेताओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी, कहानी ने 180 डिग्री का यू-टर्न ले लिया। जिन सदस्यों को ‘अपहृत’ और ‘बंधक’ बताया जा रहा था, वे अचानक मीडिया के सामने आ गए। उन्होंने एक वीडियो बयान जारी किया और पुलिस के समक्ष पेश होकर जो कुछ कहा, उसने विपक्ष के सभी आरोपों की हवा निकाल दी।
‘लापता’ सदस्यों ने एक सुर में कहा, “हमारा किसी ने अपहरण नहीं किया। हम सब वयस्क हैं और अपनी मर्जी से भ्रमण पर गए थे। हम कुछ दिनों के लिए शांति से आगामी चुनाव पर चर्चा करना चाहते थे, इसलिए हमने अपने फोन बंद कर दिए थे। हमारे ऊपर किसी का कोई दबाव नहीं है।”
यह बयान किसी राजनीतिक विस्फोट से कम नहीं था। जिन सदस्यों की ‘बरामदगी’ के लिए विपक्ष आंदोलन कर रहा था, वे खुद कह रहे थे कि वे तो घूमने गए थे। इस बयान ने न केवल भाजपा नेताओं को एक बड़ी कानूनी मुसीबत से बचा लिया, बल्कि विपक्ष को भी अजीब स्थिति में डाल दिया।
‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ – उत्तराखंड की राजनीति का पुराना खेल
यह घटना उत्तराखंड और भारतीय राजनीति में प्रचलित ‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ या ‘बाड़ेबंदी’ का एक क्लासिक उदाहरण है। यह एक ऐसी रणनीति है जिसमें कोई राजनीतिक दल महत्वपूर्ण वोटों से पहले अपने या सहयोगी सदस्यों को किसी अज्ञात और सुरक्षित स्थान, जैसे किसी रिसॉर्ट या होटल में ले जाता है।
इसका उद्देश्य दोहरा होता है:
सदस्यों को सुरक्षित रखना: यह सुनिश्चित करना कि विपक्षी दल किसी भी तरह के प्रलोभन, दबाव या खरीद-फरोख्त के माध्यम से इन सदस्यों को अपने पाले में न कर सकें।
एकजुटता बनाए रखना: सभी सदस्यों को एक साथ रखकर उन्हें पार्टी लाइन के अनुसार वोट करने के लिए तैयार करना और किसी भी तरह के विद्रोह की संभावना को खत्म करना।
नैनीताल के इस मामले में भी यही हुआ। भाजपा ने महत्वपूर्ण सदस्यों को विपक्षी खेमे की पहुँच से दूर रखने के लिए उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर भेज दिया, जबकि विपक्ष ने इसे अपहरण का रंग देकर राजनीतिक और कानूनी दबाव बनाने की कोशिश की।
कानूनी और राजनीतिक मायने
इस यू-टर्न के बाद अब इस मामले के कानूनी और राजनीतिक मायने पूरी तरह से बदल गए हैं।
कानूनी प्रभाव: जिन सदस्यों को ‘पीड़ित’ बताया गया था, उनके बयान के बाद भाजपा नेताओं पर दर्ज हुआ अपहरण का मुकदमा लगभग खत्म हो जाएगा। जब ‘पीड़ित’ ही कह रहा है कि वह अपनी मर्जी से गया था, तो अपहरण का आरोप सिद्ध करना असंभव है। पुलिस अब इस मामले में अंतिम रिपोर्ट (FR) लगा सकती है।
राजनीतिक प्रभाव: इस घटनाक्रम से भाजपा को मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक बढ़त मिल गई है। विपक्ष का ‘अपहरण’ का दांव उल्टा पड़ गया है, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं। वहीं, भाजपा अब यह दावा कर सकती है कि विपक्ष हार के डर से झूठे आरोप लगा रहा था। इसका सीधा असर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव पर पड़ेगा, जहाँ अब भाजपा के उम्मीदवार की जीत लगभग तय मानी जा रही है।
आगे क्या?
नैनीताल का यह सियासी ड्रामा भले ही कुछ दिनों तक चला हो, लेकिन इसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सत्ता की लड़ाई में नैतिकता और सिद्धांत अक्सर पीछे छूट जाते हैं। अब जबकि ‘लापता’ सदस्य वापस आ चुके हैं और उन्होंने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है, तो सबकी निगाहें जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव पर टिकी हैं।
यह घटना इस बात का भी प्रमाण है कि स्थानीय निकाय के चुनाव भी अब राष्ट्रीय राजनीति की तरह ही प्रतिष्ठा और शक्ति के अखाड़े बन चुके हैं, जहाँ जीत के लिए हर हथकंडा अपनाया जाता है।